Electricity history and cause of electricity

  
Electricity

यहाँ पर हम साधारण भाषा मे इलेक्ट्रिसिटी के बारे में अध्ययन करेंगे और आसानी से इसके उपयोग पर प्रैक्टिकल रूप में प्रकाश डालेंगे। जब कभी हमारे दिमाग मे विद्युत की बात आती है तब हमारे मन में विद्युत चमक और उससे जुड़े खतरों जैसे कि विद्युत आघात जैसी बातें आती है। क्या होती है यह इलेक्ट्रिसिटी? कैसे इसकी खोज हुई? यह सब बातें हमारे मन मे सवाल पैदा कर देती है। तो चलिए जान लेते है कैसे इस नायाब चीज़ की खोज हुई।

इलेक्ट्रिसिटी की खोज

इलेक्ट्रिसिटी की खोज के बारे में कई कहानियां मौजूद है जिसमे यह कहा जाता है कि इस प्राकृतिक घटना को कुछ लोगो ने अनुभव किया जैसे करीब 600BC के आसपास ग्रीको ने पाया कि जब बिल्ली के फर को अम्बर पर रगड़ा जाता है तो दोनों एक दूसरे को आकर्षित करते है। जिसे हम स्टैटिक इलेक्ट्रिसिटी के नाम से जानते है।
History of Electricity
 एक और कहानी है जिसमे एक वैज्ञानिक बैंजामिन फ्रैंकलिन ने आकाशीय तड़िक में उत्पन्न विद्युत को जानने के लिए एक पतंग जिसके एक तरफ धातु की चाबी बंधी थी और दूसरी तरफ पतंग थी । उन्होंने धागे के सूखे भाग को अपनी तरफ रखा और गीले भाग को पतंग की तरफ और पाया कि आकाशीय तड़िक में वही आकर्षित करने वाला गुड़ है। साथ ही चाबी के आसपास हाथ ले जाने से उत्त्पन्न चमक को पहली बार अनुभव किया गया।
ऐसे ही प्राचीन काल मे लोगो को इलेक्ट्रिक ईल से लगने वाले विद्युत आघात के बारे में भी पता था। इस प्रकार इलेक्ट्रिसिटी की जानकारी धीरे-धीरे आगे बढ़ती गयी। कुछ वैज्ञानिकों ने इस प्राकृतिक घटना के ऊपर आगे अध्ययन किया और आज जिस रूप में हम विद्युत उपयोग कर रहे है उस रूप में इलेक्ट्रिसिटी को उपलब्ध कराया।
तो अब जान लेते है कि इलेक्ट्रिसिटी क्या है?
इलेक्ट्रिसिटी चार्ज के कारण उत्पन्न होती है। जहाँ भी पॉजिटिव व निगेटिव चार्ज होगा वहाँ इलेक्ट्रिक फील्ड बन जाता है।

Electricity in simple way

सामान्य भाषा में इलेक्ट्रिसिटी :-
विद्युत को आम भाषा मे ऐसे समझ सकते है कि हर एक पदार्थ छोटे-छोटे कणों से बना है जिसे एटम (परमाणु) कहते है। परमाणु भी प्रोटोन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रान से बना होता है। हर परमाणु के अंदर एक नाभिक या न्यूकलस होता है जिसमे प्रोटान और न्यूट्रॉन रहते है और इलेक्ट्रान नाभिक के बाहर की कक्षाओ में चक्कर लगाते रहते है। प्रोटोन को हम पॉजिटिव और इलेक्ट्रान को नेगटिव गुण का मानते है। न्यूट्रॉन पर कोई आवेश नही होता वो न्यूट्रल रहता है मतलब स्टेबल या शून्य अवस्था मे रहता है। अब यहाँ जानने वाली बात है कि दुनिया की प्रत्येक वस्तु, घटना, क्रिया या अवस्था हमेशा अपने आप को शून्य या स्टेबल अवस्था मे बनाये रखने की कोशिश करती रहती है। ठीक इसी प्रकार परमाणु भी स्थिर रहने के लिए प्रोटॉन और इलेक्ट्रान की मात्रा बराबर रखकर अपने आप को स्थिर या शून्य अवस्था बनाये रखता है। जैसे-आप किसी भी तत्व की परमाणु संरचना को देखे तो उसमें आप पाएंगे कि प्रोटॉन और इलेक्ट्रान की मात्रा बराबर है। यह उस तत्व को शून्य आवेश पर रखता है। जैसे ही प्रोटॉन या इलेक्ट्रान की मात्रा में अन्तर उत्पन्न होता है वो परमाणु पॉजिटिव अथवा नेगेटिव आवेश पर आ जाता है। अगर कोई परमाणु में इलेक्ट्रान से ज्यादा प्रोटॉन है तो वह पॉजिटिव आवेश पर है और वह नेगेटिव आवेश वाले इलेक्ट्रान को लेकर नूट्रल या शून्य अवस्था में आने की कोशिश करता है। ठीक इसी प्रकार अगर कोई परमाणु में प्रोटॉन से ज्यादा इलेक्ट्रॉन हो तो वह नेगेटिव आवेश पर होता है तथा वह पोसिटिव आवेश वाले प्रोटॉन को लेकर न्यूट्रल या शून्य अवस्था मे आने की कोशिश करता है। पॉजिटिव और नेगेटिव आवेश के इस व्यवहार के कारण दोनो एक दूसरे से आकर्षित होते है और यदि एक ही प्रकार के आवेश को पास में लाया जाए तो वो एक दूसरे को विकर्षित करते है। परमाणु में नाभिक के बाहर इलेक्ट्रॉन जितने नाभिक से दूर होता है उतने ही उसकी नाभिक से बॉन्डिंग (बन्ध) कमजोर होती है। ऐसे इलेक्ट्रॉन को यदि किसी प्रकार से ऊर्जा देकर उसके कक्षा से बाहर निकाल दे तो वह उस परमाणु से निकल कर उस तत्व में स्वतंत्र रूप से घूमता रहता है और इस प्रकार उस परमाणु में इलेक्ट्रान की संख्या प्रोटॉन से कम हो जाती है और वह परमाणु पॉजिटिव आवेश पर आ जाता है। अब वह फ्री या स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन शून्य या स्टेबल अवस्था पाने ले लिए कोई दूसरा परमाणु जिसमे इलेक्ट्रॉन की संख्या कम हो से जुड़ जाता है। अब यहाँ यह सवाल पैदा हो सकता है कि वो इलेक्ट्रॉन खुद के परमाणु में पुनः क्यों नही जुड़ता? इसका उत्तर यह होगा कि जिस ऊर्जा के कारण वह अलग हुवा है। वह ऊर्जा इलेक्ट्रान के आकर्षण से ज्यादा होती है जिसके कारण इलेक्ट्रॉन दुसरा कम ऊर्जा वाला आवेशित परमाणु में जुड़ जाता है। इस प्रकार आवेश पैदा होता है और इस आवेश के संचलन या प्रवाह के कारण विद्युत पैदा होती है। इस आवेश को नापने के लिए कुलम्ब यूनिट का प्रयोग करते है। आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते है। जैसे नदी में धारा पैदा होती है जो एक जगह से दूसरे जगह तक प्रवाह करती है। ठीक वैसे ही आवेश एक जगह से दूसरे जगह तक प्रवाहित होते है जिसके कारण ठीक नदी की धारा जैसे धारा पैदा होती है और उसकी दर को विद्युत धारा कहते है।

Electricity in simple way
यह एक उदाहरण के तौर पर एटम का माडल है जिसमे आप इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रान को देख सकते है।
अब आपको आवेश के उत्पन्न होने के कारण मिल गया होगा। आवेश के कारण विद्युत क्षेत्र बनता है।

Electromotive Force

Electromotive force (EMF)

विद्युत वाहक बल
विद्युत क्षेत्र में आवेश पाया जाता है। धनात्मक और ऋणात्मक आवेश हमेशा एक दूसरे के पास आकर इलेक्ट्रीकल न्यूट्रलिटी अवस्था प्राप्त करने की कोशिश करते रहते है। जैसा कि पहले बताया गया है कि असमान आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते है और समान आवेश एक दूसरे को विकर्षित करते है यह आकर्षक या विकर्षण एक बल पैदा करता है जो एटम्स के बीच मे आवेश के प्रवाह में मदद करता है। जब कणो  पर बाह्य ऊर्जा प्रदान की जाती है तो वे कण आवेशित हो जाते है और वे विद्युत् वाहक बल के प्रभाव में आ जाते है। इस विघुत वाहक बल के कारण कण चालक के अंदर गतिशील हो जाते है। इस बल को ही विद्युत् वाहक बल कहते है। अतः विद्युत् वाहक बल वह बल है जो किसी चालक में धारा प्रवाह का कारण  बनता है। 
नीचे  के चित्र में एक विद्युत् ऊर्जा स्त्रोत के रूप में बैटरी दिखाई गयी है जिसके धनात्मक व ऋणात्मक सिरों से एक परिपथ जुड़ा है यह बैटरी परिपथ पर विद्युत् वाहक बल लगाता  है जिसके कारण बैटरी के ऋणात्मक सिरे से इलेक्ट्रान निकलकर परिपथ से होते हुवे बैटरी के धनात्मक सिरे पर जा मिलते है और इलेक्ट्रीकल उदाशीनता प्राप्त करते है।  इस प्रकार धारा का प्रवाह परिपथ में उच्च विभव यानी धनात्मक सिरे से निम्न विभव यानी ऋणात्मक सिरे की ओर लगता  है।  
जब हम किसी प्रकार की ऊर्जा को विद्युत् वाहक बल में परिवर्तित करते है तब एक इलेक्ट्रीकल क्षेत्र उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए : रासायनिक ऊर्जा बैटरी द्वारा विद्युत् ऊर्जा में, जनरेटर और टरबाइन द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तन। 
 Charge exists in electrical field. Positive and negative charges always try to come closer to maintain electrical neutrality. As stated earlier unlike charges attract each other and like charges repel each other this generates attraction/ repulsion force which moves charge particles between atoms. When external energy is applied to particles, they get charged and they  experience electromotive force. Particles start moving inside conductor due to this electromotive force or energy per unit charge. This force is known as electromotive force. Therefore Electromotive force is the force that causes a current of electricity to flow. In this figure source of EMF, is applying electrical pressure on circuit and due to this pressure electrons move towards positive point to get electrical neutrality. Flow of current is shown in reverse of electron flow which is conventional path of current. When we convert any kind of energy in EMF, an electrical field is established.
For example chemical energy (Battery) into electrical energy, Mechanical energy into electrical energy using generator and turbines or mechanical engine.

Potential, Potential different and Voltage

Potential and potential difference:

Potential is the amount of work needed to move a unit positive charge from one point to another point inside the electrical field. Potential difference is the electrical pressure difference between higher potential and lower potential. This electrical pressure difference is required to drive the current between two points in a circuit. Its unit is volt.

विभव और विभवांतर :-विभव वह कार्य की मात्रा है जो विद्युत् क्षेत्र में एक इकाई धनात्मक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में उपयोग किया जाता है। 
विभवांतर, उच्च विभव एक निम्न विभव के बीच का विद्युत् दबाव का अंतर होता है।  यह विद्युत् दबाव का अंतर या विभवांतर किसी परिपथ के दो बिन्दुओ के बीच धारा प्रवाहित करने के लिए आवश्यक होता है। इसका मात्रक या इकाई वोल्ट होता है। 


Potential, Potential different and Voltage




Potential, Potential different and Voltage


In above pictures we can see two potentials i.e. higher and lower potential. The pressure difference between higher potential and lower potential is responsible for fluid flow from higher pressure to lower pressure. In same way current flows from higher potential to lower potential between two points in a circuit.

उपरोक्त चित्र में हम दो विभव उच्च विभव एवं निम्न विभव देख सकते है। उच्च विभव एवं निम्न विभव के बिच का विभवांतर द्रव को उच्च दबाव वाले पात्र से निम्न दबाव वाले पात्र की ओर बहने के लिए जिम्मेदार होता है। इसी प्रकार धारा उच्च विभव से निम्न विभव पर दो बिन्दुओ के बीच प्रवाहित होती है। निचे विभव को उदाहरण से समझाया गया है :-

Electrical Current

जैसा कि हम जानते है आवेश को कुलम्ब मे मापते है अतः किसी परिपथ मे बहने वाले आवेश के प्रवाह की दर को धारा कहते है। 
अर्थात आवेश के प्रवाह की दर या कूलम्ब / सेकंड = धारा 
                                                                   I      =  Q/t  एम्पियर 
किसी परिपथ में धारा उच्च विभव से निम्न विभव की ओर प्रवाहित होती है अर्थात धनात्मक सिरे से ऋणात्मक सिरे की ओर प्रवाहित होती है जिससे वह विघुत उदासीनता प्राप्त कर सके। जब किसी चालक के इलेक्ट्रान को आवेशित किया जाता है  तो वह इलेक्ट्रान चालक के अंदर इधर उधर दिशा में घूमने लगता है। जब वोल्टेज उस चालक  सिरों पर अप्लाई किया जाता है तो आवेशित इलेक्ट्रान या चार्ज कैरियर एक दिशा में बहने लगते है और धारा को प्रवाहित होने के लिए रास्ता प्रदान करते है।  

As we know unit of charge is coulomb so when we calculate the rate of charge flow in a circuit, it is called current. 
Means rate of charge flow or coulomb / second = current
                                                                       I    =   Q / t   (Ampere)

Current flows through a circuit from higher potential to lower potential means from positive charge to negative charge to get electrical neutral condition. Electrons or charge careers inside conductor move in randomly direction when they get excited. When voltage is applied across that conductor the charge careers start to flow in a direction and make a path to flow of a current.

Electrical current
Electrical current


                                         


चित्र में धारा का प्रवाह दिखाया गया है। परिपथ में विद्युत् स्त्रोत के रूप में बैटरी को दिखाया गया है जिसके धनात्मक सिरे को लाल रंग के बड़े डैश से तथा ऋणात्मक सिरे को गाढ़े नीले रंग के डैश से दिखाया गया है। धारा धनात्मक सिरे से निकलकर परिपथ में लोड से होती हुवी बहने लगती है।

Resistance

It is not easy to break bonding of electrons and protons by excited charge. This opposition to flow of charge i.e. electrons due to bonding between protons and electrons is called a electrical resistance. It may also be defined as the property of the electric circuit which opposes the flow of current. Unit of electrical resistance is ohm (Ω).
उत्तेजित चार्ज के द्वारा प्रोटोन और इलेक्ट्रान की बॉन्डिंग को तोड़ना आसान नही होता है। इस इलेक्ट्रॉन के प्रवाह में आये अवरोध जो कि प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन के बॉन्डिंग के कारण पैदा होती है को इलेक्ट्रीकल प्रतिरोध कहते है। 


Resistance
Resistance and charge flow
As you can see the flow of charge (current) through a conductor is restricted by electronically bounded electrons. Charged particles move in a direction. To move conductors particles or electrons in a direction , the charged particles which are trying to flow through that conductor have to push conductors electrons. This opposition of flow is known as resistance of that conductor.
जैसा कि आप देख सकते है किसी चालक में चार्ज के प्रवाह  (Current) का विरोध उस चालक के इलेक्ट्रानिकली बंध वाले इलेक्ट्रॉन द्वारा किया जाता है। चार्ज कण एक दिशा में प्रवाहित होते है। किसी चालक के कणो को एक दिशा में गति देने के लिए चार्ज कण जो उस चालक में प्रवाहित होने की कोशिश करते है ,को उन इलेक्ट्रानिकली बंध वाले इलेक्ट्रान को धक्का देकर उनको उनकी ऑर्बिट से बाहर निकल कर अपनी दिशा में प्रवाहित करना पड़ता है। इस प्रवाह के विरोध या अवरोध को ही उस चालक का प्रतिरोध कहते है।
Resistance = opposite of current flow. 

Circuit symbol

Resistance
Resistance
Resistance
Resistor


As charged particles push electronically bounded electrons inside conductor this collision produces heat. therefore when current flows through a conductor it produces heat due to the resistance of that conductor.
चार्ज पार्टिकल किसी चालक में प्रवाहित होने पर इलेक्ट्रानिकली जुड़े इलेक्ट्रान को धक्का देते है यह टकराव उस चालक में ऊष्मा पैदा करती है | इसलिए चालक में धारा प्रवाहित होने पर ऊष्मा पैदा करती है यह उस चालक के रजिस्टेन्स के कारण होता है | 

  •  1 kilo-ohm = 1000 ohm 
  • 1 Mega-ohm = 1000000 ohm
  • 1 milli-ohm = 1/1000 ohm
Laws of Resistance (प्रतिरोध के नियम):

Resistance of a conductor depends on the following factors (चालक का प्रतिरोध निम्लिखित घटको पर निर्भर करता है):-
  1. Length (l) of the material. resistance is directly proportional to length (पदार्थ या चालक का प्रतिरोध उस पदार्थ के लंबाई के सीधे अनुपात में होता है |). 
  2. Cross-Section (A). resistance is inversely proportional to cross-section of the material (पदार्थ का प्रतिरोध उसके क्रॉस-सेक्शन के विलोमानुपातिक होता है).
  3. Nature or specific resistance or resistivity of the material(प्रतिरोध पदार्थ के प्रकृति या रेसिस्टिविटी पर निर्भर करता है).
  4. Temperature of the material(पदार्थ के तापमान का सीधा असर पदार्थ के प्रतिरोध पर पड़ता है).
Now formula of resistance is given as(इसे सूत्र रूप में निम्वत दर्शा सकते है):
                       R  =  p(l/A) ohm
where p = resistivity in ohm-meter(जहा P रजिस्टविटी है ओम-मीटर में).
l = length of the material in meter and
A = cross-sectional area of the material in square metre(l पदार्थ की लंबाई है मीटर में और A पदार्थ का क्रॉस-सेक्शन है वर्ग मीटर में).

We can undersatnd above rule by following example(उपरोक्त नियम को हम निम्न उदाहरण से समझ सकते है): 
if we have to pass a narrow street which is fully crowded then we have to face more resistance. And if we increase its length then we have to face more resistance until we reach last point of the street. Similarly if we increase width of that street means cross-section then we will face less resistance(अगर हमे एक तंग गली जो की भीड़ से भरी हुई हो से गुजरना पड़े तो हमे ज्यादा प्रतिरोध या हमारी गति का विरोध झेलना पड़ता है और यही गली लंबी हो जाए तो और ज्यादा रजिस्टेन्स झेलना पड़ता है | अब अगर उसकी चौड़ाई बढ़ जाए तब हमे उसी गली से गुजरने में कम प्रतिरोध मिलेगा |). 



Temperature Co-efficient of resistance (प्रतिरोध का तापमान गुणाक).:
The change in resistance per ohm for change in temperature of 1 degree celsius from 0 degree celsius is known as temperature co-efficient of resistance(0 डिग्री से 1 तापमान परिवर्तन पर प्रतिरोध में प्रति ओम आये बदलाव को प्रतिरोध का तापमान गुणाक कहते है|) .
 if resistance at 0 degree is R० and resistance at t degree is Rt then temperature coefficient will be:


      Rt =  R० ( 1 + ∝t ) and for large temperature range Rt = R० ( 1 + ∝t + βt ).

Ohm's Law(ओम का नियम): For a fixed metal conductor, the temperature and other conditions remaining constant the current flowing through that conductor is propotional to the potential difference across that conductor( किसी स्थिर चालक, जिसका तापमान और अन्य स्थिति को स्थिर रकह गया हो, में बहने वाली धारा उस चालक के दोनो सिरो के विभवांतर के अनुपातिक होती है|).

 means  I ∝ V  or V = RI  or V = IR where R is the constant which is known as resistance of that material अर्थात धारा ∝ विभवांतर अथवा V = R I या V = IR जहा R एक स्थिर राशि है जिसे हम उस पदार्थ का प्रतिरोध भी कहते है|).

Formula        V   =  I R    Volt


ओम का नियम: 
वैज्ञानिक ओम ने रेजिस्टेंस पर शोध करते हुवे किसी रेजिस्टेंस से गुजरने वाली धारा और उसके सिरो पर विभवांतर के बीच एक संबद्ध निकाला जिसे ओम का नियम कहते है।
इसके अनुसार:

किसी चालक से प्रवाहित होने वाली धारा उसके सिरो पर विभवांतर के समानुपाती होती है अर्थात
I ∝ V अथवा V  I
या  V = IR 
जहा R एक समानुपाती नियतांक है जिसे प्रतिरोध भी कहते है। यही ओम का नियम है।

DC current

DC current or direct current is defined as the unidirectional flow of current that means current flows only in one direction. DC is obtained from low voltage power devices for example: batteries and photo-voltaic cells. 
DC has less power loss and all semiconductor devices, computer hardware and small circuits run on dc power supply. ( डीसी धारा एकदिशिय धारा कहलाती है इसका मतलब यह है कि डीसी धारा केवल एक दिशा में ही प्रवाहित होती है। डीसी धारा लो वोल्टेज पावर उपकरणों द्वारा उत्पन्न और प्राप्त किया जाता है। जैसे : बैटरी तथा फोटोवोल्टिक सेल ।
डीसी धारा में पावर का लॉस या क्षरण कम होता है और लगभग सभी अर्धचालक उपकरण, कम्प्यूटरहार्डवेयर और छोटे सर्किट डीसी धारा पर ही काम करते है।)

dc current
DC current
DC current can also be obtained from DC generators, DC power converters, solar panels and thermocouples etc. डीसी धारा डीसी जनित्र या जनरेटर, डीसी कनवर्टर, सोलर पैनल और थर्मोकपल द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। डीसी पर काम करने वाले उपकरणों की लाइफ भी ज्यादा होती है।

DC sources:-

Battery: Battery produces dc current and battery can be one cell or many cells. Battery converts chemical energy into electrical energy by a chemical reaction inside the battery cells. Each battery has an anode and cathode which are submerged in the electrolyte. As this chemical reaction produces low voltage, many small cells are used to increase capacity of a battery. We can say a battery is a set of voltaic cells connected in series to provide required or greater voltage than a single cell. बैटरी डीसी करंट पैदा करती है और बैटरी एक सेल या कई सेल की हो सकती है। बैटरी केमिकल या रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रासायनिक क्रिया द्वारा बदल देती है जो कि उसके सेल के भीतर होती है। हरेक बैटरी में एक एनोड और एक कैथोड होता है जो कि इलेक्ट्रोलाइट में डूबे होते है। चुकी यह रासायनिक क्रिया जो कि एक सेल में होती है बहुत कम वोल्टेज पैदा करती है , कई सेल को मिलाकर एक बैटरी की क्षमता बधाई जाती है। हम बैटरी को सेल का सेट भी कह सकते है जिनको सीरीज में जोड़कर आवश्यक अथवा एक सेल से ज्यादा वोल्टेज पैदा कर सकते है।

Battery
Battery

Type of battery /cells:
बैटरी या सेल के प्रकार :
Battery or cells are of two type:-
बैटरी या सेल दो प्रकार के होते है :
1. Primary Cell and 2. secondary cell
१. प्राइमरी सेल और २ . सेकेंडरी सेल

Primary cell/Battery: Primary battery is a portable non-rechargeable voltaic cell. i.e. dry cell of torch or radio.
प्राइमरी बैटरी एक पोर्टेबल और पुनःरिचार्ज न होने वाली वोल्टायिक सेल है । उदाहरण के लिए टोर्च या रेडियो की शुष्क सेल।

Primary cell is constructed with a zinc cell, a graphite rod and a moist mixture of ammonium chloride, zinc chloride and manganese dioxide which act as electrolyte. Zinc shell acts as anode and graphite rod acts as cathode of the cell. When chemical reaction takes place free electrons are produced by zinc shell and chemicals. Graphite rod collects the current from the zinc shell and manganese dioxide. Zinc shell is known as anode with negative potential and graphite or carbon rod is known as cathode with positive potential. प्राइमरी बैटरी एक जिंक की खोल में ग्रेफाइट या कार्बन रॉड को डालकर खोल में अमोनियम क्लोराइड, जिंक क्लोराइड और मैंगनीज डाइऑक्साइड का नम मिश्रण इलेक्ट्रोलाइट के रूप में भर दिया जाता है। जब केमिकल क्रिया होती है तब जिंक शेल द्वारा इलेक्ट्रॉन निकाला जाता है। ग्रेफाइट करंट को इकट्ठा करता है। जिंक शेल को एनोड कहते है और उसपर ऋणात्मक विभव होता है जबकि ग्रेफाइट रॉड को कैथोड कहते है जिसपर धनात्मक विभव होता है।

Primary cell
Primary cell


जब केथोड रॉड तथा एनोड शेल से तार या कोई सर्किट जोड़ा जाता है तो धारा का प्रवाह धनात्मक सिरे से ऋणात्मक सिरे तक होने लगता है।

Secondary Battery/Cell:
Secondary batteries are rechargeable batteries. The Chemical reaction inside battery can be reversed by passing electric current from external electrical energy source. Thus secondary batteries are rechargeable and can be used again and again. These batteries are also called storage type cells.
सेकेंडरी बैटरी रिचार्जबल बैटरी होती है। इनके अंदर की रासायनिक क्रिया को बाह्य विद्युत स्त्रोत से धारा प्रवाहित कर परिवर्तित किया जा सकता है। अतः इन बैटरी को बार बार उपयोग में लाया जा सकता है। इन्हें स्टोरेज या संचायक बैटरी भी कहते है।
For example उदाहरण के तौर पर:-
lead acid battery, Lithium Battery, Nickel-cadmium battery, nickel zinc battery

Secondary Battery
Secondary Battery
Above is the lead acid battery. Diluted sulfuric acid works as electrolyte for the battery and lead plates are the negative plates of the battery. Similarly Lead oxide plates are the positive plates of the battery. Chemical reaction takes place at anode and cathode.
When cell is charged it has voltage E = 2.2 V.
उपरोक्त एक शीशा संचायक बैटरी है। कम सांद्रता वाले सल्फ्यूरिक एसिड इलेक्ट्रोलाइट कार्य करता है और शुद्ध शीशा वाली प्लेट ऋणात्मक प्लेट का कार्य करती है | ठीक इसी प्रकार लेड ऑक्साइड वाली प्लेट धनात्मक प्लेट का कार्य करती है | रासायनिक क्रिया एनोड और कैथोड के बीच  इलेक्ट्रोलाइट  है | जब सेल पूरी तरह चार्ज होता है तो उसका वोल्टेज 2.2 वोल्ट होती है |


DC Generator:
DC generator is an electrical machine which converts mechanical energy in to electrical energy. DC generator produces dc current. DC generator has stationary and rotary parts. Stationary part is also known as filed of dc generator which produces magnetic flux. Rotary part is known as armature of dc machine which runs with the help of mechanical force and generates electrical energy which is then  supplied to commutator unit and collected at generator terminals. We know whenever a conductor cuts magnetic flux, dynamically emf is is produced in it according to Faraday's law of electromagnetic induction. Rotary part acts as conductor and stationary or field act as magnetic flux. Rotary part which is conductor of generator runs with the help of mechanical force and cuts magnetic flux of stationary or filed. EMF is generated in armature which is then collected at terminals.
डीसी जनित्र  जनरेटर एक इलेक्ट्रिकल मशीन है जो मैकेनिकल ऊर्जा को इलेक्ट्रिकल ऊर्जा में परिवर्तित करती है | डीसी जनरेटर डीसी करंट पैदा करती है | डीसी जनरेटर में स्टेशनरी और रोटरी पार्ट  होते है  | स्टेशनरी पार्ट को डीसी जनरेटर  का फील्ड भी कहते  है और यह चुंबकीय क्षेत्र बनाता है | रोटरी भाग को आर्मेचर कहते है  और यह मैकेनिकल बल से घूमता है तथा इलेक्ट्रिकल ऊर्जा पैदा करता है जो कम्यूटेटर को सप्लाई कि जाती है और जनरेटर के टर्मिनल्स पर प्राप्त की जाती है  |
हम जानते है की जब कोई कंडक्टर चुंबकीय क्षेत्र में फ्लक्स को काटता है तब उसमे फैराडे के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन नियमानुसार एक गतिशील इएम्ऍफ़ EMF पैदा होता है | रोटरी भाग कंडक्टर काम करता है जबकि स्टेशनरी भाग चुंबकीय फ्लक्स का कार्य करता है | रोटरी  कंडक्टर भाग मैकेनिकल बल से घूमकर स्टेशनरी या फील्ड के फ्लक्स को काटता है और इलेक्ट्रो-मोटिव फ़ोर्स पैदा होती है जिसे इलेक्ट्रिकल ऊर्जा के रूप में टर्मिनल पर एकत्रित कर लिया जाता है |

DC GENERATOR
DC GENERATOR


Solar Panel (सोलर पैनल) : Solar panels or photo-voltaic solar panel converts sunlight into electrical energy. Some materials absorb sunlight and produces current. Sunlight has photons which consist of energy packets when they come into contact of some special materials (selenium, silicon and gallium arsenide), they release energy in the form of electrical energy.
सोलर पैनल सूर्य की रोशनी का उपयोग करके उसे इलेक्ट्रिकल ऊर्जा में परिवर्तित करता है |  कुछ पदार्थ सूर्य की धुप को अवशोषित  करने का गुण रखते है | धुप में फोटोन होते है जो ऊर्जा से भरे होते है जब ये  विशेष पदार्थो के संपर्क में आते है तो अपनी ऊर्जा को विद्युत रूप में मुक्त करते है और हमे इलेक्ट्रिकल ऊर्जा प्राप्त होती है |

Solar Panel
Solar Panel




AC current

In Ac current direction of charge flow or current periodically reverses means its direction changes from positive cycle to negative cycle. It has a waveform of sine-wave. As AC current direction changes periodically, it has some positive cycles and some negative cycles. This direction reversal is due to its generation mechanism.

In Alternating current the flow of charge carriers changes direction periodically. As a result, the voltage level also reverses along with the current. AC current completes one cycle in a time period “T”. Means it starts from 00 to 900  and then 900 to 1800 then 1800 to 2700 or (- 900) and again from 2700 to 3600 or 00 .  We can see it is changing periodically from 0 to 360 so its frequency would be : 1/T. Thus ac has frequency.
एसी धारा की दिशा समयावधि पर परिवर्तित होती रहती है अर्थात इसके चार्ज के प्रवाह की दिशा अथवा धारा धनात्मक चक्र से ऋणात्मक चक्र में बदलती रहती है। इसकी तरंग का रूप साइन वेव कहलाती है। एक धारा की दिशा लगातर धनात्मक चक्र से ऋणात्मक चक्र दिशा में परिवर्तित होती रहती है जिसमे कुछ धनात्मक और कुछ ऋणात्मक चक्र होते है ऐसा इसके पैदा होने के मैकेनिज्म के कारण होता है।
एसी में आवेश प्रवाह की दिशा समयावधि पर बदलती रहती है जिसके कारण वोल्टेज का स्तर भी धारा के साथ साथ बदलता रहता है। एसी धारा एक चक्र T कालचक्र में पूरी करती है जिसे उसका आवर्तकाल कहते है। इस प्रकार एसी धारा 0 से 90 अंश फिर 270 अंश और फिर 180 अंश पूरा करती हुई 360 अंश पर एक चक्र पूरा करती है। 
AC Current
AC Current
इस प्रकार एक निश्चित समयकाल में लगातार धारा की दिशा बदलने से एसी धारा का अपनी आवर्ती होती है।

AC Current
AC Current


Electrostatics and Capacitor

Electrostatics deals with static electricity means this exists where static charges are present. When two substances are rubbed together, some of the electrons are removed from the atom of one substance and joins other atoms of second substance. So they produces static electric field and this is called electrostatics.
स्थैतिक विद्युत, स्थैतिक चार्ज वाले क्षेत्र में उतपन्न स्थैतिक विद्युत ऊर्जा को कहते है|जब दो पदार्थो को आपस में रगड़ते है तो उनमे से एक पदार्थ के परमाणु से कुछ इलेक्ट्रान दूसरे पदार्थ के परमाणुओ से जा मिलते है इस प्रकार वो एक स्थैतिक विद्युत क्षेत्र पैदा करते है और इसे स्थैतिक विद्युत कहते है|

Laws of Electrostatics:
स्थैतिक विद्युत के नियम:
There are two laws of electrostatics:-
स्थैतिक विद्युत के दो नियम है:-
1. First Law: Like charges repel each other and unlike charges  attract each other.
प्रथम नियम: समान चार्ज एक दूसरे को विकर्षित करते है और असमान चार्ज एक दूसरे को आकर्षित करते है|
Electrostatic
Like charge

Electrostatic
Unlike charge

2. Second Law: The attraction or repulsion force between two point charges depends upon:
द्वितीय नियम: चार्जेज के बीच का आकर्षण या विकर्षण निम्न  बातो पर निर्भर करता है:
a. force directly proportional to the product of their charges, Q1 and Q2.
अ. यह बल दोनो आवेशों के गुणक पर सीधे निर्भर करता है|
b. force inversely proportional to the square of the distance 'd' between charges.
ब. यह बल दोनो आवेशों के बीच की दूरी के वर्ग का विलोमानुपाती होता है |
c. force inversely proportional to the absolute permittivity 'ε' of the surroundings medium.
स. यह बल आस-पास के माध्यम की पूर्ण पारगम्यता 'ε' के विलोमानुपती होता है।


Coulomb's law
Coulomb's law

where k = constant of proportionality.
जहा k = एक समानुपातिक नियतांक है |
This law is known as Coulomb's law.
यह नियम कूलंब का नियम भी कहते है |

Capacitance संधारित्रा:


Charge can be stored inside a medium that can be air, glass, mica, rubber, wood, porcelain, and varnished paper. These materials are called dielectric materials. when we place a dielectric material between conducting metal plates and voltage is applied across conducting plates, the dielectric material starts to store electrical charge.
आवेश को हवा, ग्लॉस, अभ्रख, लकड़ी, पोर्सलीन और वार्निश कागज जैसे माध्यमो या पदार्थो में स्टोर किया जा सकता है | इन पदार्थो को डाई इलेक्ट्रिक पदार्थ कहते है| जब किसी डाई-इलेक्ट्रिक पदार्थ को विद्युत चालक प्लेट्स के बीच में रखा जाता है और उसके सिरो पर वोल्टेज अप्लाई किया जाता है तो डाई-इलेक्ट्रिक पदार्थ आवेश को स्टोर करना सुरु कर देते है|
therefore capacitance can be defined as the ratio of the charge "Q" that can be stored to the volatge "V" across plates.
इसलिए संघरित्रा, स्टोर किये जा सकने वाले आवेश और प्लेट्स के सिरो पर एप्लाइड वोल्टेज के अनुपात को कहते है|
अतः गणितीय रूप में
Mathematecally,     Capacitance = Charge / Volatge
                                                      Q
                                           C    =  -----     Farrad
                                                       V
The unit of capacitance is farrad. संघरित्रता का मात्रक फैरड होता है|

Capacitor संधारित्र:
Capacitor is a device which can store electric charge. It consists of two conducting plates separated by an insulating or dielectric material.
संधारित्र एक उपकरण है जो विद्युत आवेश को स्टोर कर सकता है | इसमे दो विद्युत चालकीय प्लेट्स के बीच में कुचालक या डाई-इलेक्ट्रिक पदार्थ होता है |




Capacitor
Capacitor


Circuit symbol of capacitor:-
Capacitor
Capacitor




Electromagnetism & Inductor

Electromagnetism is a phenomenon of electricity that causes magnetic field. This is produced when an electric current flows through a conductor or cables. We can find out South and North pole of generated magnetic field with the help of direction of current flow. Whenever  an electric current flows through a conductor, a magnetic filed is built up around that conductor, this is called electromagnetism. We can see this filed using a card board, iron powder and current carrying wire according to the figure 1.1.
electromagnetism
Electromagnetic effect
इलेक्ट्रो मैगनेटीज्म एक  इलेक्ट्रिकल घटना है जिसके कारण चुंबकीय क्षेत्र बनता है | जब किसी चालक या वायर से विद्युत् धारा प्रवाहित होती है तो उसके चारो तरफ चुंबकीय क्षेत्र बनता है | धारा प्रवाह की दिशा की मदद से हम उसमे उतपन्न हुवे चुंबकिय क्षेत्र का  उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव ज्ञात कर सकते है | जब कभी भी किसी चालक  से होकर विद्युत् धारा  प्रवाहित होती है उसमे चुंबकीय क्षेत्र बनता है इसे ही विद्युत चुम्कत्व कहते है |

Electrical measuring instruments

इलेक्ट्रीकल मापन यंत्र द्वारा इलेक्ट्रीकल राशियों जैसे:- विद्युत धारा, वोल्टेज, विद्युत शक्ति, प्रतिरोध, संधारित्रा, इन्डक्तटेंस आदि को मापा जाता है।

किसी भी परिपथ, घरेलू तथा औद्योगिक उपकरण को ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए उचित मात्रा में विद्युत धारा, वोल्टेज और विद्युत शक्ति की आवश्यकता होती है। यदि हमे उस परिपथ या घरेलू तथा औद्योगिक उपकरण की विद्युत ऊर्जा खपत और विद्युत राशियों का उचित सप्लाई के बारे में जानकारी न हो तो वह उपकरण या परिपथ सही ढंग से कार्य नही कर पायेगा। 
उदाहरण के लिए जैसे आपको ज्ञात न हो कि 50KM की यात्रा को पूरा करने के लिए आपके वाहन को कितनी फ्यूल की आवश्यकता होगी तो आप या तो जरूरत से कम या ज्यादा फ्यूल भरवा लेंगे और फलस्वरूप आपकी यात्रा 50 KM तक पूरी हो भी सकेगी और नही भी।
इसलिए किसी भी साधन को कोई कार्य करने में कितनी मात्रा में ऊर्जा की जरूरत पड़ती है इसकी जानकारी और आकलन लगाना नितांत आवश्यक होता हैं।

जिस प्रकार किसी साधन को कोई कार्य करने के लिए ऊर्जा के रूप में फ्यूल की जरूरत होती है ठीक उसी प्रकार किसी विद्युत उपकरण को ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए विद्युत ऊर्जा के रूप में धारा, वोल्टेज और विद्युत शक्ति की जरूरत होती है।

विद्युत धारा, वोल्टेज, विद्युत शक्ति, प्रतिरोध, कपैसिटेंस, इन्डक्टेंस, इम्पीडेंस इत्यादि को मापने के लिए प्रयोग किये जाने वाले उपकरण:

1.  एम्मीटर
2.  वोल्टमीटर
3.  पावर मीटर या वाट मीटर
4.  एनर्जी मीटर
5.  पावर फैक्टर मीटर
6.  फ्रीक्वेंसी मीटर
7.  ओम मीटर
8.  कैप्सिटेन्स मीटर
9.  आसलिस्कोप
10. मल्टी मीटर
11. क्लैंप मीटर
12. मेगर या इंसुलेशन टेस्टर
इत्यादि।

एमीटर(Ammeter):-
यह मापन उपकरण किसी परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है। जैसा कि हम जानते है विद्युत धारा को एम्पियर मात्रक में मापा जाता है इसलिए इस उपकरण को एम्मीटर कहते है और इसके द्वारा मापी गयी धारा को हम एम्पियर में दर्शाते हैं। 
विद्युत धारा की माप माइक्रो तथा मिली एम्पियर से लेकर किलो एम्पियर तक होती है। इस उपकरण पर A या Amps लिखा होता है जो धारा की मात्रक को दर्शाता है।
एम्मीटर एनालॉग और डिजिटल दोनो प्रकार के होते है। पुराने समय मे एनालॉग उपकरण द्वारा ही धारा को मापते थे जो कि मूविंग कॉइल, मूविंग मैगनेट, मूविंग आयरन इत्यादि तकनीक पर कार्य करते थे। इनके कार्य करने का सिद्धांत यह है कि जब कभी किसी कॉइल या चालक में धारा प्रवाहित होती है तो उसमें एक विद्युत क्षेत्र पैदा होता है । इस उपकरण में फिक्स्ड मैगनेट के बीच मे एक मूविंग कॉइल होती है जिससे इस उपकरण का इंडिकेटर जुड़ा होता है ।

Moving coil Ammeter
मूविंग कॉइल उपकरण

जब मूविंग कॉइल में कोई धारा प्रवाहित होती है तो उसमें भी मैग्नेटिक क्षेत्र पैदा होता है जो अपने चारों तरफ के फिक्स्ड मैगनेट के क्षेत्र से डिफ्लेक्ट होता है और वह डिफ्लेक्शन रीडिंग के रूप में मूविंग कॉइल से जुड़े इंडिकेटर द्वारा प्राप्त होती है।
ammeter circuit
एमीटर का उपयोग परिपथ के सीरीज में किया जाता है ताकि परिपथ से गुजरने वाली धारा को मापा जा सके। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है बैटरी से निकलकर धारा परिपथ से होती हुई अमीटर में जाती है और फिर उससे निकालकर लोड जो कि एक बल्ब है में जाती है इस प्रकार बल्ब द्वारा खपत की गई धारा का मान एमीटर पड़ता है।
एनालॉग एमीटर निम्नवत है:-
एमीटर

एमीटर सिंगल फेज, थ्री फेज और एसी तथा डीसी टाइप में आते है। एमीटर डिजिटल भी आ रहे है जिसमे यह सारे ऑप्शन एक साथ इनबिल्ट होते है। डिजिटल एमीटर निम्वत है:-
Digital Ammeter
डिजिटल एमीटर द्वारा हम आसानी से धारा की माप पढ़ सकते है।

वोल्टमीटर(Voltmeter):-
वोल्टमीटर दो शब्दों से बना है वोल्ट और मीटर जिसमे वोल्ट मात्रक है और मीटर मापने वाला यंत्र है। इस प्रकार यह यंत्र वोल्टेज मापता है। वोल्टमीटर डिजिटल एवम अनोलॉग दोनो प्रकार में उपलब्ध है।
Voltmeter
Voltmeter
वोल्टमीटर किसी परिपथ या लोड के सिरो के बीच के विभवांतर को मापने के कार्य करता है। यह हमें बताता है कि किसी परिपथ या उपकरण को कार्य करने के लिए आवश्यक धारा को उस परिपथ या उपकरण में प्रवाहित करने के लिए उसके सिरो पर कितना इलेक्ट्रीकल दबाव लगाया जा रहा है जिसे हम वोल्टेज में मापते है। इस प्रकार वोल्टमीटर का प्रयोग दो बिन्दुओ के विभवांतर को नापने के लिए किया जाता है तथा इसे परिपथ या उपकरण के सिरो के पैरेलल में लगाया जाता है। जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।
Voltmeter
Voltmeter

Switch

स्विच का मतलब बदलना या चालू बंद करना होता है। अतः विद्युत स्विच एक इलेक्ट्रीकल डिवाइस है जो विद्युत परिपथ को ऑन-ऑफ करता है। अर्थात स्विच का प्रयोग विद्युत लोड जैसे :- विद्युत उपकरण- फैन, टीवी, फ्रिज, लैंप, कंप्यूटर को ऑन-ऑफ करने के लिए किया जाता है। स्विच विद्युत धारा को ऑन होने पर उससे जुड़े उपकरण तक पहुचने के लिए रास्ता देता है और ऑफ होने पर रोक देता है। स्विच कई प्रकार के होते है तथा उनका प्रयोग अलग अलग प्रकार के परिपथों को ऑन-ऑफ करने के लिए किया जाता है।
यहाँ एक घरेलू स्विच को समझाया गया है।
switch
स्विच

switch
स्विच
उपरोक्त चित्र में एक स्विच को दर्शाया गया है दूसरे चित्र में दो पॉइंट दिखाए गए है जिसमे एक पॉइंट से सप्लाई का फेज वायर जोड़ा जाता है और दूसरे पॉइंट से विद्युत उपकरण का फेज वायर जोड़ते है  तथा उपकरण का न्यूट्रल वायर न्यूट्रल से डायरेक्ट जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार जब स्विच को ऑन करते है तो उपकरण को सप्लाई का फेज स्विच द्वारा प्राप्त हो जाता है और विद्युत ऊर्जा सप्लाई से स्विच से होती हुई उपकरण में बहने लगती है।
switch connection
switch connection
स्विच लोड या उपकरण द्वारा खपत की जाने वाली विद्युत धारा के अनुसार कई रेटिंग में उपलब्ध होते है जैसे:- 5A, 6A, तथा 15A or 16A इत्यादि।

इसके अलावा अन्य स्विच निम्नवत है:-
पुश बटन स्विच, रोटरी स्विच, टॉगल स्विच, फुट स्विच, सेन्ट्रीफ्यूगल स्विच, आइसोलेटर स्विच, लाइट स्विच, टच स्विच इत्यादि।



Electrical switch board

सभी के घरों में इलेक्ट्रीकल स्वीच बोर्ड का उपयोग किया जाता है । स्वीच बोर्ड में कई कॉम्पोनेन्ट होते है जिनका उपयोग हम अपने घर के उपकरणों को नियंत्रित करने में करते है। स्वीचबोर्ड लकड़ी, हार्ड प्लास्टिक तथा अन्य विद्युत कुचालक पदार्थो से बना एक बॉक्स के आकार का बोर्ड होता है जिसमे स्वीच, सॉकेट, फ्यूज, बल्ब होल्डर, कनेक्शन वायर्स और इंडीकेटर लगा होता है। जैसा कि निम्न चित्र में दर्शाया गया है:-
Switch board
Switch board
इस प्रकार यह एक कंट्रोल बोर्ड या विद्युत वितरण बोर्ड की तरह कार्य करता है। इसमे सप्लाई वायर का फेज वायर सीधे फ्यूज के एक सिरे से जोड़ दिया जाता है तथा न्यूट्रल वायर को सीधे इंडिकेटर के न्यूट्रल पॉइंट से जोड़ देते है। अब फ्यूज के दूसरे सिरे से स्वीच के फेज पॉइंट या एक पॉइंट से जोड़ देते है।

कनेक्शन : स्विच बोर्ड का कनेक्शन करने से पहले स्विच का कनेक्शन करना सीखेंगे फिर सॉकेट का कनेक्शन करेंगे फिर पूरे स्विच बोर्ड का कनेक्शन करेंगे

स्विच का कनेक्शन : स्विच में दो पॉइंट होते है जिसमे एक पॉइंट पर फेज और दूसरे पर लोड जैसे घरेलू उपकरण को चलाने के लिए फेज आउटपुट जोड़ते है।
जैसा कि आप ऊपर के इमेज में देेख सकते है कि इसमे दो प्वाइंट है एक प्वाइंट पर फेज और दूसरे से फेज लोड या साकेेट से जुुुड़ा रहता है।



सॉकेट का कनेक्शन: सॉकेट में दो या तीन प्वांइट होता है। जिसमें मोटा वाला पॉइंट अर्थ के लीये होता है। बाकी केे बचे दो पॉइंट में किसी एक पर स्विच से आया हुुुआ फेज का आउटपुट वायर जोड़ते है और दूसरे से न्यूट्रल जुड़ा होता हैं।

Electrical MCB, RCCB, Main switch, Fuse

MCB:
MCB का पूरा नाम मिनिएचर सर्किट ब्रेकर है। यह एक प्रोटेक्टिव डिवाइस है जो लोड या किसी परिपथ को इलेक्ट्रीकल फाल्ट (Overload & Short Circuit) की अवस्था मे ऑफ करने का काम करता है। जिससे परिपथ या लोड या इलेक्ट्रीकल उपकरण मुख्य सप्लाई से अलग हो जाता है और फाल्ट की अवस्था से बच जाता है। MCB में एक इलेक्ट्रो-मेकैनिकल मैकेनिज्म होती है जो फाल्ट की अवस्था मे MCB के कांटेक्ट को ब्रेक करके लोड अथवा इलेक्ट्रीकल उपकरण को मेन सप्लाई से अलग कर देती है।
                       
MCB सिंगल पोल , दो पोल वाला , तीन पोल वाला या 4 पोल में आते है। इसमें एक प्लास्टिक का लीवर या स्विच होता है जिसे ऊपर नीचे करने  से MCB ऑन और ऑफ की जा सकती है। इसके ऊपर वाले स्क्रू होल में मेन सप्लाई का तार जोड़ते है और नीचे के स्क्रू होल में लोड या इलेक्ट्रीकल उपकरण के तार को जोड़ा जाता है।

जैसा कि आप उपरोक्त चित्र में MCB के आंतरिक भाग को देख सकते है इसमें मुख्यतः ऑन-आफ लीवर से मूविंग कॉन्टेक्ट जुड़ा होता है । इसमे एक आर्क को बुझाने हेतु आर्क चैम्बर होता है। जिसमे MCB के कांटेक्ट के लगने और छूटने के दौरान उत्पन्न इलेक्ट्रीकल चिंगारी को बुझाया जाता है। 
इसमे मूविंग लिवर स्प्रिंग से जुड़ा होता है और एक थर्मल एक्चुवेटर इस लिवर को फाल्ट की दशा में मूव कराकर सर्किट को ऑफ करने का काम करता है। कुछ MCB में थर्मल के साथ साथ मैग्नेटिक प्रोटेक्शन भी होता है। मैग्नेटिक प्रोटेक्शन वाले MCB में सर्किट के सीरीज में एक मैग्नेटिक कॉइल लगी होती है जो सर्किट में धारा का मान टॉलरेंस के बाहर या शार्ट सर्किट की दशा में बढ़ने से मैग्नेटाईज़ होकर मूविंग लीवर को एक्चुवेट करके ऑन से ऑफ पोजीशन में वापिस लाती है।

सर्किट के हिसाब से प्रकार: सर्किट के हिसाब से MCB सिंगल पोल, डबल पोल, ट्रिपल पोल या फोर पोल में उपलब्ध होती है। सिंगल फेज जिसमे न्यूट्रल और फेज का तार उपयोग होता है , में सिंगल पोल या डबल पोल MCB का प्रयोग कर सकते है।  तीन फ़ेज़ 3 तार के लिए हम 3 पोल एमसीबी का उपयोग करते हैं।  तीन फ़ेज़ 4 तार (R,Y,B,N) के लिए हम 4 पोल एमसीबी का उपयोग करते हैं।

चुनाव: MCB का चुनाव सर्किट के धारा के मान और सर्किट की संख्या पर निर्भर करता है। धारा के हिसाब से यह 6 एम्पीयर, 10 एम्पीयर, 16 एम्पीयर, 32 एम्पीयर, 64 एम्पीयर और इससे ऊपर के धारा के लिए बाजार में उपलब्ध होता है। एक सर्किट के लिए सिंगल, दो सर्किट के लिए डबल फेज, थ्री फेज के लिए ट्रिपल फेज और ट्रिपल फेज विद न्यूट्रल के लिए फोर पोल MCB बाजार में उपलब्ध है।

Fuse फ्यूज: फ्यूज का इस्तेमाल सर्किट का प्रोटेक्सन अत्यधिक धारा से करने केे लिए किया जाता है। फ्यूूूज सर्कीट के सीरीज में लगाया जाता है। यह फेज लाईन में लगाया जाता है। जब भी सर्किट करंट फ्यूज रेटिंग से अधिक प्रवाहित होगा तो फ्यूज पिघल जाएगा और सर्किट की सुरक्षा करेगा। चूँकि फ़्यूज़ तार का गलनांक कम होता है, यह सूत्र H = I²Rt (जहाँ h = ऊष्मा, I = धारा, t = समय) के अनुसार उच्च सर्किट धारा के कारण पिघल जाएगा। 

फ़्यूज़ का उपयोग :- फ्यूज का उपयोग हर इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सर्किट में किया जाता है। उदाहरण के लिए घरों में हम अपनी Main Supply में फ़्यूज़ का उपयोग करते हैं। ग्लास फ़्यूज़ का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में किया जाता है उदाहरण के लिए:- चार्जिंग सर्किट, इनवर्टर सर्किट, एसी सर्किट, वॉशिंग मशीन सर्किट, औद्योगिक उपकरण सर्किट आदि में

Electrical House wiring

घरेलू वायरिंग के बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक है क्योंकि घर पर इलेक्ट्रीकल उपकरणों को पावर सप्लाई से सावधानी से जोड़ना और अलग करना आना चाहिए। साथ ही वायरिंग ऐसी हो जो जल्दी खराब न हो, उसमे आग लगने का खतरा न हो और उसमें लीकेज धारा बहने का भी खतरा न हो। यह सब जानकारी करने से हम अपने घर में सुरक्षित वायरिंग कर सकते है।

घरेलू वायरिंग से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:-
1. घरेलू वायरिंग करने से पहले घर मे उपयोग होने वाले विद्युत उपकरणों की संख्या तथा प्रत्येक उपकरण की पावर तथा करंट रेटिंग पता करना आवश्यक होता है।
2. सामान्यतः हम घरेलू वायरिंग के लिए घर के प्रत्येक कमरे को एक सर्किट के रूप में बाँट देते है जिसको लाइट फैन सर्किट कहते है तथा जिसका लोड 800 वाट के करीब रखते है।
3. साथ ही कमरो में पावर उपकरण के लिए एक अलग पावर सर्किट जिसका लोड 1500 वाट रखा जाता है, बनाया जाता है।
4. वायरिंग के लिए फायर प्रूफ केबल या वायर चुनना अच्छा रहता है।
5. घर के उपकरणों को सही प्रकार से चलाने तथा विद्युत आघात से बचाव ले लिए अर्थिंग होना नितांत आवश्यक होता है।
6. सप्लाई से घर की वायरिंग जोड़ने के लिए फ्यूज, RCCB तथा MCB लगाना आवश्यक होता है।
7. वायरिंग करते समय वायरिंग के पाइप तथा जंक्शन बॉक्स पहुँच के बराबर पर करना चाहिए।

घरेलू वायरिंग में लगने वाले विद्युत डिवाइस: 

1. अर्थिंग या ग्राउंडिंग : यह घर के सभी उपकरणों को विद्युत फाल्ट से खराबी और इंसानों को विद्युत आघात से बचाने के लिए बहुत जरूरी होता है। अर्थिंग का मुख्य उद्देश्य घर के उपकरणों के बॉडी में जो कि धातु की बनी हो सकती है विद्युत फाल्ट या उपकरण में खराबी के समय प्रवाहित होनी वाली लीकेज धारा को सीधे जमीन में प्रवाहित करा देना जिससे इंसानो को विद्युत आघात नही लग पाता और उपकरण भी और खराब होने से बच जाता है।

घर की अर्थिंग के लिए अर्थिंग इलेक्ट्रोड रॉड का इस्तेमाल किया जा सकता है जो कापर धातु का बना होता है।
earthing electrode
अर्थिंग इलेक्ट्रोड
अर्थिंग रॉड दो टाइप में मिल सकती है एक जो सिंगल कापर की रॉड के रूप में जिसे सीधे जमीन में गाड़कर इस्तेमाल किया जा सकता है तथा दूसरा कपलिंग के साथ आता है जिसमे दो या उससे अधिक सिंगल कापर रॉड लगाकर इलेक्ट्रोड की लंबाई बढाई जा सकती है। इन रॉड के नीचे के नुकीले भाग को जमीन में गाड़ते है तथा ऊपर वाले भाग जिसमे नट बोल्ट सिस्टम होता है या फिर क्लेम्पिंग सिस्टम होता है से घर के उपकरणों को जोड़ते है।

2. अर्थिंग वायर:- अर्थिंग वायर कापर या जीआई वायर का बना होता है। जिसका इस्तेमाल अर्थिंग इलेक्ट्रोड से घरेलू उपकरणों के धातु वाले भाग को जोड़ने के लिए किया जाता है।
earthing cable
earthing wire
अर्थिंग केबल अक्सर पीले हरे रंग की होती है ताकि उसकी पहचान आसानी से किया जा सके। अर्थिंग केबल को इलेक्ट्रोड से अच्छी प्रकार से जोड़कर घर के सभी उपकरणों के अर्थिंग पिन पर जोड़ना चाहिए । कैसे जोड़े यह आगे बताया जाएगा।

3. फेज तथा न्यूट्रल वायर या केबल:-फेज वायर का साइज चुनने से पहले अपने घर के समस्त इलेक्ट्रिकल उपकरणों का लिस्ट बनाया जाता है तथा   साथ ही  भविष्य में भी लगाए जाने वाले उपकरणों का भी एक लमसम अंदाज लेते हुवे लिस्ट बनाया जाता है। सभी उपकरणों का करंट रेटिंग लिख कर जोड़ ले या करंट रेटिंग न उपलब्ध हो तो सबके वाटेज लिख कर जोड़ ले और फिर उसको निम्नलिखित फार्मूला से करंट निकाल ले। 

टोटल करंट = टोटल वाटेज / सप्लाई वोल्टेज 

उदहारण के तौर पर अगर आपके घर पर 40 वाट के 6 बल्ब तथा 60 वाट के 4 पंखे और 60 वाट के 2 टीवी और 100 वाट का एक  फ्रीज़ तथा 1000 वाट का एक गीज़र है तो आपको इस प्रकार से टोटल धारा या करंट निकालना होगा।

क्रम संख्या            उपकरण                      संख्या                 वाटेज                  टोटल वाटेज 
     1                  बल्ब                            6                      40                       240
     2                  पंखे                             4                      60                       240
     3                  टीवी                            2                      60                       120
     4                  फ्रिज                            1                     100                      100
     5                  गीज़र                           1                     1000                     1000
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
                                                                                        टोटल      =        1700  वाट 
अब टोटल करंट निम्नलिखित तरीके से निकालेंगे :-

टोटल करंट  =  टोटल वाट 1700 / सप्लाई वोल्टेज 230  =  7.2 एम्पेयर लगभग 10 एम्पियर चुनेंगे। 

इसके लिए हम कॉपर का तार चुनेंगे जो 10 एम्पेयर तक की धारा सह सके आपको इस रेटिंग का तार दुकानदार दे देगा या आप इंटरनेट से चुन सकते है। 
उदाहरण के तौर पर कॉपर का 1 mm square का वायर 10 एम्पेयर तक आराम से सह सकता है। इसलिए हम 10 एम्पेयर तक के लिए 1 mm square का वायर चुनेंगे।



4. वाटेज डिस्ट्रीब्यूशन :- जब घर के वायरिंग के लिए लेआउट बनवाया जाता है तब पूरे घर के लोड को दो भागो में बाटते है :- (१) लाइट फैन सर्किट 
(२) पावर सर्किट। लाइट फैन के लिए अलग बोर्ड तथा पावर लिए अलग बोर्ड बनता है।
लाइट फैन सर्किट के लिए 800 वाट तथा 1500 वाट पावर सर्किट के लिए स्टैण्डर्ड लेते है। साथ ही लाइट फैन के लिए 6 एम्पेयर और 16 एम्पेयर पावर सर्किट के लिए लेते है। 

5. सॉकेट तथा प्लग का चुनाव :- छोटे लोड जैसे पंखे, लाइट, टीवी तथा मिक्सर ग्राइंडर के लिए 6 एम्पेयर तक का सॉकेट और प्लग चुन सकते है जो 2 पिन तथा 3 पिन में बाजार में उपलब्ध होता है। 3 पिन वाला सॉकेट और प्लग  सबसे अच्छा होता है क्युकी तीसरा पिन अर्थिंग का होता है जो हमे इलेक्ट्रिकल आघात से बचाता है। बड़े उपकरणों जैसे फ्रिज, आयरन , गीज़र, AC तथा हीटर के लिए 15 या 16 एम्पेयर के तीन पिन वाला सॉकेट और प्लग चुनते है।
6. डिस्ट्रीब्यूशन बोर्ड तथा सुरक्षा :- डिस्ट्रीब्यूशन बोर्ड प्रत्येक कमरे के बोर्ड में जाने वाले फेज और न्यूट्रल के तारो को लोड के हिसाब से सप्लाई को भेजने का काम करता है। जैसे 4 कमरे के लिए 4 वे डिस्ट्रीब्यूशन बोर्ड प्रयोग करते है।
घर के उपकरणों को ख़राब होने से बचाने के लिए mcb तथा अर्थिंग का प्रयोग करते है।